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गले में दर्द | Pain or Irritation in the Throat

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गले में दर्द? Pain or Irritation in the Throat?

          विभिन्न कारणों से गले में दर्द(Pain or Irritation in the Throat) होता है जैसे – किसी चीज से गले पर चोट लगती है, गला छील जाता है, अधिक गर्म पदार्थ खाने या पीने के कारण गला जल जाने पर गले में दर्द होता है। इसके अलावा गले में सूजन आ जाने या कफ बनने के कारण, खाँसी अत्यधिक समय व दिनों तक रहने से भी दर्द होता है।

गले में दर्द हो तो क्या करें?

विभिन्न घरेलू आयुर्वेदिक औषधियों से उपचार:

रीठा : रीठे के छिलके को पीसकर लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग की मात्रा में शहद को मिलाकर सुबह-शाम रोगी को चटाना चाहिए।

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शहतूत : शहतूत का शर्बत पीने से गले की खुश्की और दर्द ठीक हो जाता है।

मूली : मूली का रस और पानी को बराबर मात्रा में लेकर उसमें नमक मिलाकर गरारे करने से गले के घाव ठीक हो जाते हैं।

साबुत धनिया : हर 3-3 घंटे के अंदर 2 चम्मच सूखा साबुत धनिया को चबा-चबाकर चूसते रहने से हर प्रकार के गले का दर्द दूर होते हैं।

फिटकरी : भुनी हुई फिटकरी को ग्लिसरीन में मिलाकर गले में डालकर कुल्ला करने से गले के दर्द में आराम मिलता है।

अजीब : अजीब के रस को रूई के फाये में लगाकर 2 से 3 बूंद गले में सुबह-शाम लगाने से गले के रोगों में लाभ मिलता है।

इमली : इमली के पानी से कुल्ला करने से गले का दर्द दूर हो जाता है।

पालक : पालक के पत्तों को उबालकर पानी छानकर, पत्तों को निचोड़ लें। इसके गर्म-गर्म पानी से गरारे करने से गले का दर्द ठीक हो जाता है।

250 मिलीलीटर पालक के पत्ते लेकर 2 गिलास पानी में डालकर उबाल लें और जब उबलने के बाद पानी आधा बाकी रह जाये तो उसे छान लें। इसके गर्म-गर्म पानी से गरारे करने से गले का दर्द ठीक हो जाता है।

नींबू : एक गिलास पानी में एक नींबू को निचोड़कर उससे कुल्ला और गरारे करने से आराम आता है या गर्म पानी में नींबू निचोड़कर पीने से भी आराम आता है।

एक छोटे चम्मच नींबू के रस में एक बड़ा चम्मच शहद मिलाकर दिन में 2 से 3 बार थोड़ा-थोड़ा खाने से गले का दर्द ठीक हो जाता है।

बच : बच के लगभग आधा ग्राम चूर्ण को थोड़े गर्म दूध में डालकर दिन में तीन बार पिलाने से गले में जमा हुआ कफ ढीला पड़कर निकल जाता है और गले का दर्द खत्म हो जाता है।

निर्गुण्डी : निर्गुण्डी के पत्तों का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से लाभ होता है।

निर्गुण्डी के तेल को मुंह, जीभ तथा होठों में लगाने से तथा हल्के गर्म पानी में तेल में मिलाकर मुंह में थोड़ी-सी देर रखने से लाभ पहुंचता है।

नीम : 2 चम्मच नीम की पत्तियों के रस को एक गिलास गर्म पानी में, आधा चम्मच शहद को मिलाकर रोजाना गरारे करने से गले में जमा हुआ कफ दूर होता है।

नमक : पानी में नमक को मिलाकर गरारे करने से टॉन्सिल, गले में दर्द, सूजन, दांत के दर्द आदि रोगों में आराम मिलता है।

कालीमिर्च : दो दो चुटकी काली मिर्च व हल्दी युक्त गुनगुने पानी से गरारे करने व चाय की तरहः पिने से गले की खराश,दर्द,सूजन,आवाज बैठना में अतिउत्तम है।

चाय पत्ती : चौथाई चम्मच चायपत्ती एक कप पानी में उबालकर गरारे करने से गले के दर्द की समस्या दूर हो जाती है।

भाई राजीव दीक्षित जी के ज्ञाना अनुसार टॉन्सिल का ऑपेरशन नही करना चाहिए, क्योंकि कराने के बाद अन्य समस्या बढ़ जाती है इसलिए गले की हर समस्या हेतु अचूक औषधि है हल्दी को याद कर नियमित उपयोग करें जबतक पुर्णतः स्वस्थ नही हो जाते आधा चम्मच हल्दी का रस सीधे गले के अंदर रखने से गले के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।

विभिन्न होमियोपैथी औषधियों से उपचार:

बेलाडोना : अगर रोगी के गले में खुश्की होती है, मुंह का अन्दरुनी भाग शीशे की तरह चमकता है, मुंह गुहार सूजा हुआ होता है, टॉन्सिल सूज कर लाल हो जाती है। दायीं तरफ रोग विशेष रूप से फैलता है और रोगी में हर समय कुछ निगलने की सी हरकत होती रहती है या उसे निगलने की इच्छा होती रहती है।

गला सूखा महसूस होता है, द्रव्य या सख्त चीजों के सेवन करते समय कभी-कभी वे नाक से निकल पड़ते हैं। द्रव्य या ठोस पदार्थ के स्पर्श को गल कोष सहन नहीं करता है। इसलिए नाक से पानी या भोजन निकल आता है।

अगर जुकाम के कारण गले में दर्द होता है, रोग अत्यंत शीघ्रता से बढ़ जाता है और गला खुश्क हो जाता है तो ऐसे लक्षणों में रोगी को बेलाडोना औषधि की 3 या 30 शक्ति का उपयोग करने से लाभ मिलता है।

इस तरह के लक्षणों के साथ यदि रोगी को गले में रेत के कण जैसा अटका हुआ महसूस होता है तथा गले की खुश्की दूर करने के लिए वह बार-बार पानी पीता है तो ऐसे लक्षणों में रोगी को बेलाडोना औषधि देने के स्थान पर सिस्टस औषधि सेवन करना अधिक लाभकारी होता है।

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मर्क-सौल : गले से सम्बंधित विभिन्न लक्षण जैसे- गला खुश्क होना, गले में दर्द होना, हर समय मुंह में आने वाले लार को निगलने की इच्छा, टॉन्सिल का भीतर तथा बाहर से सूज जाना और दर्द होना, गले में जलन होना और लाल होकर सूज जाना आदि प्रकार के लक्षणों में रोगी को मर्क-सौल औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।

मर्क-सौल औषधि का प्रयोग गले में सूजन, जलन व दर्द के अतिरिक्त मुंह व सांस से तेज बदबू आने पर भी किया जाता है।

यदि इन लक्षणों के साथ ही रोगी की जीभ सूज गई हो तो उसे मर्क-कौर औषधि का प्रयोग करना अधिक लाभकारी होता है।

गले में गाढ़ा, चिपकने वाला थूक जमा होता है या रोग पुराना हो जाने पर सूजन कम होती है परन्तु गाढ़ा कफ अधिक आता है तो ऐसे में रोगी को मर्क-सोल औषधि देना बेहतर होता है।

फाइटोलैक्का : गले के रोग से पीड़ित रोगी के अगर गले की श्लैष्मिक -झिल्ली काले रंग की हो गई हो, टांसिलों का रंग भी काले या हल्के काले रंग का हो गया हो, किसी चीज को निगलने में जीभ के जड़ में दर्द हो तथा साथ ही पीठ व अन्य अंगों में भी दर्द हो तो ऐसे लक्षणों में रोगी को फाइटोलैक्का औषधि की 3 शक्ति का सेवन करना चाहिए।

रोग के ऐसे लक्षण जिसमें रोगी को अपने गले में फंसे कफ को निगलने के लिए लगातार कोशिश करना पड़ता है। रोगी की जीभ सूज जाती है, गर्म पानी पीने से रोग बढ़ जाता है, रोगी को विशेष रूप से दांई तरफ दर्द होता है जो कान तक फैल जाता है। ऐसे में रोगी को फाइटोलैक्का औषधि की 3 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।

यदि रोगी को गले में दर्द होता है, रोगी बेचैन रहता है, कमजोर रहता है, श्लैष्मिक -झिल्ली का कालापन, गले में थक्का बनना आदि लक्षण हों तो रोगी को फाइटोलैक्का औषधि के स्थान पर लैकेसिस औषधि का सेवन करना चाहिए क्योंकि की ऐसे लक्षणों में यह औषधि विशेष लाभकारी होती है।

कैलि-म्यूर : इस औषधि का प्रयोग गले में सफेद रंग का श्लेष्मा जमा होने पर करना लाभदायक होता है। रोगी के गले की टॉन्सिल में सूजन आ जाती है और उस पर भूर रंग के दाग या जख्म बन जाते हैं। ऐसे में रोगी को कैलि-म्यूर औषधि की 12x या 30 शक्ति का उपयोग करना हितकारी होता है। यह औषधि पेट की गड़बड़ी के कारण होने वाले गले का रोग तथा गले के पास की ग्रंथियां सूज जाने पर प्रयोग करना लाभकारी होता है।

कैलि-बाईक्रोम : यदि कोई रोगी गले के रोग से पीड़ित हो और उसके गले में दर्द हो, गले में चिपटने वाला, लसदार श्लेष्मा आता हो, कान की नली में दर्द होता हो तथा गले में जमे हुए कफ को निकालने के लिए बार-बार कोशिश करना पड़ता हो तो ऐसे लक्षणों में रोगी को कैलि-बाईक्रोम औषधि की 3ग या 30 शक्ति का उपयोग करना हितकारी होता है।

यदि इन लक्षणों के साथ रोगी को गले में कफ महसूस होता है और बार-बार खखारने पर भी बाहर नहीं निकलता हो तो ऐसे में रोगी को कैलि-बाईक्रोम औषधि के स्थान पर अमोनिया-म्यूर औषधि का सेवन करना उचित होता है।

गुआएकम मूलार्क : गले के दर्द में यह औषधि अत्यंत लाभकारी होती है। रोगी के गले में तेज दर्द होता है और दर्द के कारण रोगी गला पकड़कर बातें करता है तथा रोगी को गले में छील जाने की तरह जलन होती है परन्तु गला लाल नहीं होता है।

गले में दर्द होने के कारण दायां भाग विशेष रूप से प्रभावित होता है, टांसिल सूजी जाती है, गला सूख जाता है तथा रोगी को कोई भी पदार्थ निगलने के लिए पानी पीना पड़ता है। ऐसे लक्षणों में रोगी को गुआएकम औषधि के मूलार्क या 3 या 6 शक्ति का सेवन करना चाहिए। यदि इन लक्षणों के साथ रोगी को प्यास नहीं लगती और गला सूखा रहता है तो ऐसे में गुआएकम औषधि के स्थान पर पल्सेटिला औषधि का प्रयोग करना लाभकारी होती है। पल्सेटिला के प्रयोग से रोगी का गला नीला पड़ जाना, शिरा सूज जाना तथा गले में दर्द होना आदि कष्ट को दूर कर सकते हैं।

लैकेसिस : अगर रोगी को गले में थक्के की तरह कुछ अटका हुआ महसूस होता है जो खाने-पीने पर गले से नीचे आ जाता है और फिर तुरंत गले में वापिस आ जाता है। सोकर उठने पर या अचानक नींद खूल जाने पर भी रोग बढ़ जाता है। जब रोगी थूक को निगलता है तो भी गले में दर्द होता है।

कोई सख्त या मूलायम चीजें खाने पर उसे निगलने में दर्द होता है। गले को छूने पर दर्द होता है तथा अन्दर नीला लाल दिखाई देता है। इस रोग में गले में अत्यंधिक दर्द होता है और हल्का सा कोई चीज छू जाने पर भी रोगी दर्द के मारे तड़प उठता है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को लैकेसिस औषधि की 30 शक्ति का उपयोग करना हितकारी होता है।

कैंथरिस : यदि रोगी को गले में दर्द होता है विशेषकर गले के पिछले भाग में और गले में आग की तरह जलन होती है। गले में सूजन आ जाती है जिससे गले में जलन व तेज दर्द होता है। सूजन खत्म होने पर भी जलन व दर्द होता है।

इस तरह के लक्षणों में रोगी को कैंथरिस औषधि की 6 या 30 शक्ति का सेवन कराना चाहिए। इस औषधि का प्रयोग गले में चुभन की तरह दर्द होने के साथ गले के अन्दर सूजन होने पर भी किया जाता है परन्तु ऐसे लक्षणों में कैंथरिस औषधि के स्थान पर एपिस औषधि देना अधिक लाभकारी होता है।

हिपर-सल्फर : रोगी के गले में ऐसा दर्द होता है जैसे गला छील गया हो, रोगी के गले में ऐसा महसूस होता है जैसे कोई गोल चीज गले में घूम रही हो तथा गले में पस (पीब) पड़ गया हो, ऐसे लक्षणों में रोगी को हिपर-सल्फर औषधि लेना लाभकारी होता है। इस औषधि का प्रयोग चुभने की तरह दर्द होने पर किया जाता है।

यदि रोगी के गले में जख्म हो गया हो और जख्म के कारण गले में चुभन की तरह दर्द हो तो नाइट्रिक-ऐसिड औषधि का सेवन करना उचति होता है।

यदि गले में कांटे चुभने की तरह दर्द के साथ गले में चिपटने वाली श्लेष्मा जमा हो और गला बैठ गया हो तो रोगी को अर्जेन्टम-नाइट्रिकम औषधि का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

गले में कुछ अटका हुआ महसूस होने के साथ कांटे चुभने की तरह दर्द होना तथा ऐसा महसूस होना जैसे कोई चीज गले में अटकी हुई है तो ऐसे लक्षणों में रोगी को कैलि-कार्ब औषधि का सेवन करना हितकारी होता है।

फेरम-फॉस या सेनेगा : अधिक बोलने, अधिक देर तक गाना गाने तथा जोर से चिल्लाने के कारण गले में होने वाले दर्द को ठीक करने के लिए फेरम-फास औषधि की 6x या सेनेग औषधि की 3 शक्ति का उपयोग करना लाभदायक होता है।

एलूमिना : यदि किसी को गाना गाने के कारण गले में दर्द हो तो उसे एलूलिना औषधि की 6 या 30 शक्ति का सेवन करना चाहिए।

नक्स-वोमिका : कई बार कुछ गलत खान-पान के कारण गले में दर्द व जलन पैदा हो जाती है जैसे- शराब पीने, धूम्रपान करने तथा अधिक ठंडी चीजों का सेवन करने के कारण। इन कारणों से रोगी के गले में दर्द होता है और गले में कफ भरा हुआ महसूस होने के कारण वह उसे बार-बार खखारकर निकालने की कोशिश करता रहता है। ऐसे कारण से होने वाले गले के दर्द को दूर करने के लिए नक्स-वोमिका औषधि की 6 या 30 शक्ति का उपयोग करना लाभदायक होता है।

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