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इम्यूनिटी सिस्टम | रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपाय

इम्यूनिटी सिस्टम (रोग प्रतिरोधक क्षमता)

इस पूरे पोस्ट को पढ़े उससे पहले ही मैं इस ज्ञान से साथ अपना विचार रख रहा हूँ प्राकृतिक शरीर मे अप्राकृतिक तत्वों का सेवन ही हमारे शरीर व अस्तित्व को समय से पहले मिटा रही है

इम्यूनिटी सिस्टम (रोग प्रतिरोधक क्षमता ) क्या है ? :

रोग प्रतिरोधक क्षमता शब्द ज़्यादातर प्रयोग में लाया जाता है जबकि इसका सही तक़नीकी शब्द होता है रोगक्षमता यानी इम्यूनिटि (Immunity) तथा रोग प्रतिरोधक तन्त्र का तक़नीकी शब्द होता है रोग क्षमता तन्त्र ।

जब हमारे शरीर में कोई रोगाणु प्रवेश करता है तो रोग प्रतिरोधक तन्त्र उससे लड़ता है जिससे लक्षण उत्पन्न होते हैं और रोग की उत्पत्ति होती है। किन्तु जब शरीर किसी रोगाणु के प्रति रोगक्षम (Immune) होता है तब तन्त्र शीघ्रता से रोगाणुओं को नष्ट कर देता है और कोई लक्षण उत्पन्न नहीं होते यानी रोग उत्पत्ति नहीं होती और शरीर स्वस्थ बना रहता है।

Lack of immunity power

आपने अक़्सर देखा होगा कि कुछ लोगों को रोग कभी भी अपनी जकड़ में ले लेते हैं तो कुछ लोग कभी बीमार नहीं होते तथा हर समय ऊर्जावान बने रहते हैं। कई लोगों में दवा देर से असर करती है तो कुछ उस दवा की आधी मात्रा से ही ठीक हो जाते हैं। इस सबके पीछे रोगक्षमता की स्थिति कारण होती है।

हमारे शरीर का रोगक्षमता तन्त्र जितना अच्छे तरीके से कार्य करेगा हमारी रोगक्षमता उतनी ही बलवान रहेगी और हम अच्छे स्वास्थ्य के साथ-साथ अच्छी गुणवत्ता वाला जीवन जी सकेंगे और अधिक आयु में भी हमारा स्वास्थ्य युवाओं जैसा बना रहेगा।

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रोगक्षमता तन्त्र (Immune System) को असंयत और कमज़ोर कर रोगक्षमता (Immunity) का ह्रास करने वाले कई कारण होते हैं जिससे शरीर के रोगग्रस्त होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इन कारणों तथा रोगक्षमता को बलवान बनाये रखने वाले उपाय एवं औषधीय प्रयोगों पर चर्चा करने से पहले रोगक्षमता तन्त्र के विषय में थोड़ी चर्चा करना ठीक रहेगा।

इम्यूनिटी सिस्टम कैसे काम करता है ?

रोगक्षमता तन्त्र बहुत जटिल होता है। और विशेष कोशिकाओं, प्रोटीन्स, ऊतक व अंगों से बना होता है जो मिलकर रोगाणुओं, कैन्सर कोशिकाओं, विकृत कोशिकाओं आदि को नष्ट करते हैं। हालाकि शरीर को संक्रमण मुक्त व स्वस्थ रखने में यह तन्त्र मुख्य भूमिका निभाता है परन्तु कई बार इस तन्त्र की गड़बड़ी से रोग जन्म लेते हैं।

उदाहरण के लिए अलर्जी, रूह्यमेटॉइड ,आथ्रटिस आदि । रोगक्षमता तन्त्र में एन्टीबॉडीज़, काम्प्लीमेण्ट प्रोटीन, इन्टरफेरॉन आदि कई भाग होते हैं पर हम यहां इसके मुख्य हिस्से श्वेत रक्त कोशिकाओं (White Blood Cells) की चर्चा कर रहे हैं।

Leukocytes
Leukocytes

श्वेत रक्त कोशिकाएं: श्वेत रक्त कोशिकाएं जिन्हें ल्यूकोसाइट्स (Leukocytes)कहते हैं। शरीर के विभिन्न स्थानों पर विकसित और संग्रहीत होती हैं। इनसे जुड़े अंग होते हैं थायमस ग्रन्थि, प्लीहा(Spleen), लसीका पर्व (Lymph node) और अस्थिमज्जा (Bone Marrow) जिन्हें लसीका अंग (Lymphoid Organs) कहते हैं।

श्वेत रक्त कोशिकाएं के प्रकार और कार्य:-

श्वेत रक्त कोशिकाएं मुख्यतः 2 प्रकार की होती हैं। पहली भक्षक कोशिका (Phagocytes) जो सूक्ष्म जीवों, विकृत कोशिकाओं तथा विजातीय कणों को निगल जाती हैं तथा दूसरी होती हैं लसीका कोशिका (Lymphocytes) जो शरीर पर आक्रमण कर चुके रोगाणुओं को याद रखने और पहचानने का कार्य करती हैं।

1 – भक्षक कोशिका (Phagocytes):– भक्षण करने वाली कोशिकाएं कई प्रकार की होती हैं जिनमें सबसे अधिक संख्या न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils) की होती है जो मुख्यतः जीवाणुओं से लड़ती हैं।

इसीलिए संक्रमण के दौरान रक्त की जांच कराने पर इनकी संख्या बढ़ी हुई आती है।

2 – लसीका कोशिका:– लसीका कोशिका भी दो प्रकार की होती हैं जिनका निर्माण अस्थिमज्जा में होता है। जो वहीं रह कर परिपक्व होती हैं। उन्हें B प्रकार की लसीका कोशिका ( B Lymphocyte) कहते हैं जो थायमस ग्रन्थि में पहुंच कर परिपक्व होती हैं उन्हें T प्रकार की लसीका कोशिका (T Lymphocyte) कहते हैं।

इन दोनों कोशिकाओं के कार्य अलग-अलग होते हैं।

B प्रकार की कोशिकाएं रोगक्षमता तन्त्र के सूचना विभाग की तरह कार्य करती हैं और अपने लक्ष्य को तलाश कर उसे चिन्हित करती हैं ताकि अन्य कोशिकाएं उसको नष्ट कर सकें।

T प्रकार की कोशिकाएं सैनिकों की तरह होती हैं जो सूचना विभाग यानी B प्रकार की कोशिकाओं की सहायता से रोगाणुओं और विजातीय तत्वों को नष्ट करती हैं।

उदाहरण के लिएB प्रकार की कोशिकाएं जीवाणुओं के प्रोटीन, जिसे एन्टीजन कहते हैं, के विरुद्ध एन्टीबॉडीज़ बनाती हैं जो उन प्रोटीन से जुड़ कर उन्हें चिन्हित करती हैं। और फिर T प्रकार की कोशिकाएं उन्हें नष्ट करती हैं।.

इन कोशिकाओं का विकास के दौरान, शरीर के तत्वों और बाहरी तत्वों में अन्तर करने का प्रशिक्षण भी हो जाता है। जिन लोगों में ये कोशिकाएं शरीर के तत्वों को बाहरी तत्व (Foreign Body) की तरह पहचान कर उनके विरूद्ध कार्य करने लगती हैं उनमें कई रोग (Autoimmune diseases) उत्पन्न हो जाते हैं।

रोगक्षमता तन्त्र जिस प्रक्रिया द्वारा जीवाणुओं, विषाणुओं और हानिकारक विजातीय तत्वों को पहचानता है और उनसे शरीर की रक्षा करता है उसे रोगक्षम अनुक्रिया (Immune Response) कहते हैं।

और इस क्षमता को रोगक्षमता (Immunity) कहा जाता है। रोग क्षमता कई प्रकार की होती है जिनमें से कुछ की यहां संक्षिप्त चर्चा की जा रही है। कई प्रकार के रोगाणुओं और तत्वों से बचने की जो क्षमता हमें जन्म से प्राप्त होती है उसे स्वाभाविक रोगक्षमता (Innate Immunity) कहा जाता है। इसके अन्तर्गत शारीरिक संरचना से सम्बन्धित अवरोधक जैसे कफ रिफ्लेक्स, आंसु तथा त्वचा के तैल में एन्जाइमस, श्लेष्मिक कला, त्वचा,आमाशयी अम्ल, आदि आते हैं तो काम्लीमेन्टरी प्रोटीन्स, इन्टरफेरॉन, इन्टरल्यूकिन आदि रासायनिक अवरोधक भी आते हैं।

जब विभिन्न प्रकार के रोगाणु या विजातीय तत्व शरीर में प्रवेश करते हैं तो उनके खिलाफ रोगक्षमता तन्त्र विशेष प्रकार का प्रोटीन तैयार करता है जिसे एन्टीबॉडी कहते हैं जो सम्बन्धित रोगाणु या विजातीय तत्व के शरीर में पुनः प्रवेश करने पर उन्हें तुरन्त नष्ट कर देते हैं और रोग उत्पत्ति नहीं होती। इसे उपार्जित रोगक्षमता (Acquired Immunity) कहते हैं

उदाहरण के लिए एक बार चिकन पॉक्स हो जाने पर इस प्रकार की रोग क्षमता के कारण यह दोबारा नहीं होता। ऐसे ही जब कृत्रिम रूप से रोगाणु का प्रोटीन उतनी ही मात्रा में पहुंचाया जाता है कि उसके विरूद्ध शरीर में एन्टीबॉडीज तो तैयार हो जाएं पर रोग उत्पन्न न हो तो इसे कृत्रिम रोगक्षमता (Artificial Immunity) कहते हैं जो बच्चों में टीकाकरण (Immunization ) द्वारा उपार्जित की जाती है।

जब किसी दूसरे शरीर में निर्मित एन्टीबॉडीज किसी शरीर में पहुंच कर रोगों से रक्षा करती है तो उसे निष्क्रिय रोग क्षमता (Passive Immunity) कहते हैं जैसे माता से प्राप्त शिशुओं में रोगक्षमता।

इतनी आधारिक चर्चा के बाद आइए अब रोगक्षमता तन्त्र को कमज़ोर करने वाले कारण और उसको बलवान बनाने वाले उपायों पर चर्चा शुरू करते हैं।

इम्युनिटी पावर (रोग प्रतिरोधक क्षमता) कम होने के कारण :

सभी स्वस्थ रहना चाहते हैं पर स्वस्थ रह नहीं पाते क्योंकि सारा ध्यान और ज्ञान बीमारियों का पता लगाने और दवाओं पर लगा रहता है जबकि यह बात सभी बखूबी जानते हैं कि बीमार होकर चिकित्सा करने से बेहतर और आसान होता है उस बीमारी से बचाव करना।

Lack of Immunity Power

रोग प्रतिरोधक शक्ति शब्द से सभी परिचित होते हैं पर यह किन कारणों से कमज़ोर होती है और शरीर के रोगग्रस्त होने की सम्भावना बढ़ जाती है इस विषय में कदाचित बहुत कम लोग जानते होंगे। इस चर्चा के आरम्भ में हमने रोगक्षमता तन्त्र पर थोड़ी बात की ताकि इस तन्त्र की शारीरिक स्वास्थ्य को बनाये रखने में क्या भूमिका होती है यह अच्छे से समझ में आ सके।

आइए अब रोगक्षमता को कमज़ोर करने वाले तत्वों पर चर्चा शुरू करते हैं।

इम्युनिटी पावर (रोग प्रतिरोधक क्षमता ) बढाने के उपाय :

रोगक्षमता में सुधार लाने और उसे बलवान बनाये रखने के कुछ उपाय इस प्रकार हैं।

(1) प्रदीप्त जठराग्नि – सर्व प्रथम हमें अपनी जठराग्नि एवं धात्वाग्नियों को प्रदीप्त करना चाहिए ताकि ग्रहण किये गये आहार का पाचन और चयापचय अच्छे से हो। इसके लिए भोजन में अदरक, नींबू, सेन्धानमक, सौंफ, धनिया, जीरा आदि का प्रकृति के अनुसार प्रयोग करना चाहिए।
(2) जीवनशैली – आयुर्वेदिक शास्त्रों के अनुसार दिनचर्या, रात्रिचर्या और ऋतुचर्या का पालन करना।
(3) आहार – भोजन के अच्छे पाचन के लिए जठराग्नि अच्छी रहे इसके लिए निश्चित समय पर भोजन करना, भोजन पश्चात 3 घण्टे तक कुछ नहीं खाना, छः घण्टे से अधिक भूखे नहीं रहना तथा भूख से कम खाना आदि नियमों का दृढ़ता से पालन करना चाहिए। भोजन के 1 घण्टे बाद पानी पीना तथा दिन भर में 3-4 लिटर पानी पीना चाहिए।

✦ इम्युनिटी पावर बढ़ाने वाले खाद्य – भोजन ऋतु और अपनी प्रकृति के अनुसार ही करना चाहिए। गेहूं, बाजरा, मक्का, चावल, चना आदि अन्न; लौकी, तोरई, टिण्डे, परवल, शलजम, आलू आदिसब्ज़ियां और गहरी हरी पत्तेदार व रंगीन सब्ज़ियां जैसे पालक, मैथी, चौलाई, मूली के पत्ते, गाजर आदि का ऋतु अनुसार सेवन करना चाहिए।

✦ इसके अलावा आहार में सब्ज़ियों का सूप व सलाद, ताज़े फल एवं उनका रस, शहद, नारियल पानी आदि को भी शामिल करना चाहिए। सूखे मेवों में काजू, बादाम, किशमिश, मुनक्का, खजूर आदि का यथा शक्ति प्रयोग करें तथा मीठे में यथा सम्भव गुड़ का ही प्रयोग करें।

✦ तलेभुने व नमकीन मसालेदार व्यंजन, नमक, शक्कर, मिष्ठान, चाय, काफी आदि का कम से कम उपयोग करें। इन सब आहारीय पदार्थों से वो पोषकतत्व प्राप्त होते हैं जो रोगक्षमता तन्त्र की क्रियात्मकता के लिए ज़रूरी होते हैं।

✦ प्रातः काल उठते ही पानी, दोपहर के भोजन के बाद छाछ, शाम के भोजन के बाद गुड़ और रात्रि को सोते समय दूध का सेवन करना चाहिए।
(4) व्यायाम-नियमित व्यायाम से रोगक्षमता तन्त्र स्वस्थ रहता है और मज़बूत भी होता है। कुछ न कर सकें तो प्रतिदिन 45 मिनिट तेज़ चाल में घूमने का अभ्यास रखें। इससे रोगाणुओं को नष्ट करने वाली एन्टीबॉडीज़ व T प्रकार की लसीका कोशिकाएं अपना कार्य बेहतर ढंग से कर पाती हैं। फिर व्यायाम से मनोदशा ठीक रहती है और तनाव व अवसाद जैसे रोगक्षमता कम करने वाले तत्व दूर होते हैं।
(5) मल विसर्जन-मल का त्याग समय पर और अच्छी तरह से हो इसका ख्याल रखना चाहिए। यदि क़ब्ज़ रहता हो तो रात्रि में एरण्ड तैल में भुनी हुई हरड़ का चूर्ण 3 ग्राम मात्रा में गर्म पानी से लें। कई बार क़ब्ज़ आदि कारणों से आंतों में संक्रमण और सूजन बनी रहती है जिससे ग्रहण किये गये आहार में पोषक तत्व होते हुए भी उनका आंतों द्वारा पर्याप्त अवशोषण नहीं हो पाता है।
(6) निद्रा-शरीर के रोगक्षमता तन्त्र के बलवान बने रहने के लिए शरीर को पर्याप्त विश्राम देना भी आवश्यक होता है। यह विश्राम अच्छी नींद के अलावा तनाव में कमी करने और सकारात्मक सोच रखने से प्राप्त होता है। शरीर के जीर्णोद्धार और ऊर्जा संरक्षण की प्रक्रिया के लिए पर्याप्त नींद आवश्यक है। रात को कम से कम 6-7 घण्टे आवश्य नींद लेना चाहिए ।

औषधीय प्रयोग से इम्यूनिटी पावर (रोग प्रतिरोधक क्षमता) बढ़ाने के उपाय :

यदि किसी कारण से रोगक्षमता कम हो गयी हो या उपरोक्त उपायों से भी लाभ न मिल रहा हो तो निम्नलिखित प्रयोग में से किसी एक प्रयोग को करना चाहिए।

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के औषधी


(1) अश्वगन्धा, शतावरी, सफ़ेद मूसली, हरड़, बहेड़ा, आंवला, गिलोय, वायबिडंग, सूठ, काली मिर्च, पिप्पलीसभी द्रव्यों को समान भाग लेकर यवकूट करें। द्रव्य से आठ गुना पानी लेकर धीमी आंच पर उबाल कर क्वाथ बनाएं । एक चौथाई रह जाने पर छान कर वापिस उबालें और गाढ़ा होने पर सुखाकर पाउडर बना कर रख लें।

सेवन विधि – इस चूर्ण की एक ग्राम मात्रा एक चम्मच शहद में मिला कर भूखे – पेट चाट लें । यदि इसमें एक रत्ती स्वर्णबसन्त मालती रस एवं एक रत्ती मन्डूर भस्म मिला कर लें तो विशेष लाभ होता है। बच्चों को इस रसायन में कुमार कल्याण रस की 3० मि. ग्रा. मात्रा व 125 मि.ग्रा. घनसत्व मिला कर शहद में चटाएं और ऊपर से अरविन्दासव की एक चम्मच दें। इस प्रयोग को 40 दिन तक करें।
(2) आमलकी रसायन- आंवले का चूर्ण बना कर उसे आंवले के रस में 3-4 घण्टे तक खरल में घोंट कर सूखने दें। इसको भावना देना कहते हैं। ऐसी 21 भावना दें। 21 भावना देने के बाद पाउडर बना कर रख लें। इसे आमलकी रसायन कहते हैं। | सेवन विधि- 1 से 2 ग्राम मात्रा शहद या मिश्री मिला कर भूखे पेट सेवन करें। यह प्रयोग एक वर्ष तक करना चाहिए।
(3) च्यवनप्राश, ब्राह्मी रसायन या अन्य शास्त्रोक्त रसायन वाजीकरण योगों का प्रयोग करें। किसी वैद्य द्वारा बनाया हुआ योग ज्यादा लाभ करता है क्योंकि अधिक मात्रा में बनाने तथा विभिन्न प्रकार के परिरक्षक रसायन, रंग, सुगन्ध आदि के मिलने से इसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है।
(4) शास्त्रोक्त प्रयोग- 1 ग्राम स्वर्ण भस्म, 1 ग्राम रजत भस्म, 3 ग्राम मोती पिष्टी, 5 ग्राम शिलाजित्वादि लोह, 10 ग्राम गिलोय सत्व, 5 ग्राम वंग भस्म, 10 ग्राम चौसठ प्रहरी पिप्पली- इन सबको अच्छी तरह से खरल कर 40 पुड़ियां बना लें।

सेवन विधि – शरीर का शोधन करके एक पुड़िया सुबह भूखे पेट एक चम्मच शहद में मिला कर चाटें। एक घण्टे तक कुछ न खाएं। रसायन सेवन काल में सात्विक भोजन करें। खट्टी तली हुई चीजें और बासी भोजन न करें। यह प्रयोग भी 40 दिन तक करना चाहिए।
(6) शतावरी घृत – शतावरी 500 ग्राम, जीवक ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीर काकोली, मुनक्का, मुलैठी, मुदगपर्णी, माषपर्णी, विदारीकन्द, लाल चन्द- प्रत्येक 10-10 ग्राम। सभी द्रव्यों को यवकूट कर 8 किलो पानी में डाल कर धीमी आंच पर पकाएं और जब 2 किलो पानी शेष रह जाए तब इसमें गाय का एक किलो घी मिला कर वापिस धीमी आंच पर उबालें। जब इसका क्वाथ जल जाए और घी शेष रह जाए तब छान कर कांच या स्टील के बर्तन में रख लें।

सेवन विधि – पहले अच्छे जुलाब से पेट साफ़ करें फिर 5 ग्राम घी में 5 ग्राम पिसी मिश्री मिलाकर चाटें और ऊपर से गाय का दूध पीएं। इसका प्रयोग शीत ऋतु में एक माह तक करना चाहिए।

हमारे रसोईघर की औषधियों (मसालों) का सेवन हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता ही नहीं बढती हमे रोग हो जाने पर रोगमुक्त कर देती है, जरूरत है उनके गुण उपयोग का ज्ञान ग्रहण करना व जीवन मे उपयोग करना ही सबसे बड़ी समझदारी है बजाये रासायनयुक्त दवायों का..

निरोगी रहने हेतु महामन्त्र:

मन्त्र 1 :-

  • भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें
  • रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें
  • विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)
  • वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)
  • ‎एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)
  • मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें
  • भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें

मन्त्र 2 :-

  • पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)
  • भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)
  • ‎सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये
  • ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें
  • पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये
  • बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूर्णतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें

भाई राजीव दीक्षित जी के सपने स्वस्थ भारत समृद्ध भारत और स्वदेशी भारत स्वावलंबी भारत स्वाभिमानी भारत के निर्माण में एक पहल आप सब भी अपने जीवन मे भाई राजीव दीक्षित जी को अवश्य सुनें

स्वदेशीमय भारत ही हमारा अंतिम लक्ष्य है :- भाई राजीव दीक्षित जी

Shree. Rajiv Dixitji
Shree. Rajiv Dixitji
मैं भारत को भारतीयता के मान्यता के आधार पर फिर से खड़ा करना चाहता हूँ उस काम मे लगा हुआ हूँ

|| वन्देमातरम जय हिंद ||

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  1. There’s certainly a lot to learn about this issue. I like all the points you made.

Gau Srushti
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